Glacial Lakes क्या है और भारत में इसका क्या प्रभाव पढ़ रहा है.
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ऐसी लेक जो ग्लेशियर के पानी से बनी हो उसे हम ग्लेशियर लेक कहते है और ग्लेशियर बर्फ से बनी होती है . ग्लेशियर लेक जो बरफ के पिघलने से होती है जो किसी नदी से न मिलकर किसी किसी ऐसी जगह स्थिर हो जाती और आपस में मिलकर ग्लेशियर का रूप ले लेती है. जिसे हम ग्लेशियर लेक कहते है.
जब ग्लेशियर अपनी जगह से मूव करते है तो तो अपने साथ-साथ जमीं के कुछ हिस्से भी लेते चलते है. जिन्हें हम बोल्डेर्स कहते है .और यह बोल्डेर्स भी स्थान पर या गहरे स्थान पर मेल्ट होकर एक अव्यवस्थित तरीके से जमा हो जाते है.
What is Moraines- जब बरफ मल्ट या पिघलती है तो यह एक स्थान से दुसरे स्थान तक मूव करती है जिससे इसके साथ साथ कुछ छोटे और बड़े पत्थर भी इसके साथ-साथ चलते है जो किसी गड्ढे में बरफ के साथ जमा हो जाते है यह बहुत महबूत नहीं होते है. जितनी बड़ी लेक या झील होती है मोरैनेस उतनी है कमजोर होती है .छोटी ग्लेशियर या लेक बड़ी लेक की मुकाबले ज्यादा मजबूत होती है और यदि लेक जितनी बड़ी होती है मोरैनेस की संख्या उतनी ही ज्यादा होती है . जब बरफ पिघलती है तो बर्फ लिक्विड बन बहता है और यदि लेक बड़ी होतो यह मोरैनेस ज्यादा खतरनाक साबित होती है जिससे नुकसान का दर ज्यादा होता है.
अतः हम कह सकते है की मोरैनेस एक टूटे हुए पत्थरों और टुकड़ों की दिवार है . और यह इस तरह व्यवस्थित होती है यदि कोई इससे थोडा सी भी धक्का दे तो यह टूट सकती है. जिसे हम moraines कहते है. यह अन्य चट्टानों के मुकाबले ज्यादा मजबूत नहीं होती है. और जितना मेल्टेड पानी जमा होगा इसका स्तर उतना ही बढता चला जायेगा .
बरफ के मल्ट होने के बाद जितना ज्यादा पानी का दबाव होगा पानी उतना ही ज्यादा जमीन के अन्दर जायेगा जिससे हिमस्खलन का खतरा बढता ही जाता है.
नासा के एक शोध के अनुसार भारत या अन्य देशो में सन 1990 से सन 2020 तक ग्लेशियर लाकों की संख्या में 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है.
जितनी ज्यादा ग्लेशियर ग्लेशियर होंगी होंगी बरफ उतनी है ज्यादा कमजोर होंगी.
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उतराखंड में ग्लेशियर लेक का प्रभाव और उसके कारण-
हॉल ही में उतराखंड में ग्लेशियर लेक के फटने या पिघलने से काफी नुकसान हुआ है. जिससे वहां ऋषि गंगा नदी में चल रही NTPC की विद्युत् परियोजना को काफी नुकसान हुआ है. और 100 से ज्यादा लोग लापता है. जिनकी खोज जारी है.
Reason- उतराखंड में हुए snow avalance जो की इस दुर्घटना से ठीक 2 हफ्ते हुए snow fall की वजह से बरफ की कुछ ज्यादा ही मोती परत जम गयी थी जो की धुप निकलने के बाद पिघली और और ऐसा कई बार होने से लास्ट में बरफ के मल्ट होने सा साथ ही उसके साथ जुड़े हुए मोरैनेस भी मूव करने लगे और पानी का दबाव ज्यादा होने के कारण यह हादसा हुआ.
अभी भी इस हादसे की कुछ सही पुष्टि नहीं हो पाई है जिसको देखते हुए इसकी जाँच के लिए 10 टीमों को तैनात किया है जिनका काम केवल अलग-अलग रिपोर्ट पेश करना है और इस हादसे के और क्या कारन हो सकते है यह जाने की कोशिश रहे है.
क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियर की संख्या में निरंतर वृधि होती जा रही है. चूंकि उतराखंड में 1000 से भी ज्यादा ग्लेशियर है और इनमे बढोतरी होती जा रही है.
Nice
ReplyDeleteSahi h
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